अपनी नींव पर खड़ा पत्थर आ रहा उफान
बहुत समय से झैल रहा आंधी पानी और तूफान
कब तक समझोगे तुम उस खंडहर की मजबूरियाँ
छत और आंगन की बनाए रखता है दूरियाँ
उड़ चुकी है खुशबू फिर भी वो ठहरा है
जमीन से रिस्ता उसका बहुत गहरा है।
©अग्यार’बिश्नोई’
अपनी नींव पर खड़ा पत्थर आ रहा उफान
बहुत समय से झैल रहा आंधी पानी और तूफान
कब तक समझोगे तुम उस खंडहर की मजबूरियाँ
छत और आंगन की बनाए रखता है दूरियाँ
उड़ चुकी है खुशबू फिर भी वो ठहरा है
जमीन से रिस्ता उसका बहुत गहरा है।
©अग्यार’बिश्नोई’