चूल्हे की लकड़ी हूँ

चूल्हे की लकड़ी हूँ
जलकर खत्म हो जाऊँगी

फिर भी मेरी जली देह को किसी के काम के लिये
न्यौछावर कर जाऊँगी

छोड़ सब मोह
जीवन त्याग जाऊँगी

फिर भी जीवन को सुन्दर स्वपन दिखाऊँगी
राख से भी नया काफ़िला बनाऊँगी

हर दर्द के गम को गीला कर जाऊँगी
फिर लौटकर आऊँगी।

©अग्यार’बिश्नोई’

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