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मजबूरियाँ

मजबूरियाँ कमजोर सी हैमगरजिम्मेदारी मार देती है इन्सान को,धमकियों के बजायजिम्मेदारी सिखा देती हैजीना शैतान को,रह ले खुले में इन्सान मगर कुछ जिम्मेदारियाँबनावा देती हैमकान को। ©अग्यार'बिश्नोई'

तो क्या करे 

ये ख्याल,वो हालत,खराब मौसम हैइस मौसम कीबात करे तो क्या करे माहोल थोड़ा गर्म हैपत्ते नये ,वृक्ष पुराना ये सदियों से चला आ रहा जमानाबात चरम हैरखने वाले थोड़े नरम है। ©अग्यार'बिश्नोई'

चूल्हे की लकड़ी हूँ

चूल्हे की लकड़ी हूँजलकर खत्म हो जाऊँगीफिर भी मेरी जली देह को किसी के काम के लियेन्यौछावर कर जाऊँगीछोड़ सब मोहजीवन त्याग जाऊँगीफिर भी जीवन को सुन्दर स्वपन दिखाऊँगीराख से…